धार्मिक मान्यता के अनुसार श्री यंत्र (श्री अर्थात धन) संपत्ति को प्रदान करने वाला है।कलयुग में धन की इच्छा किसे नहीं है। कौन ऐसा है जो धनवान नहीं बनना चाहता? किसे लक्ष्मी से स्नेह नहीं है। कलयुग में श्रीयंत्र (Shree Yantra) कामधेनु के समान है। वेदों के अनुसार श्री यंत्र में 33 करोड़ देवताओं का वास है।
श्री यंत्र क्या है?
वास्तु के अनुसार श्री यंत्र अद्भुत शक्ति संपन्न धन-संपत्ति, सुख और वैभव प्रदान करने वाला एकमात्र यंत्र है। यदि विधिपूर्वक श्री यंत्र सिद्ध कर लिया जाए तो धन संपति घर आंगन में खेलती है। जो सिद्ध श्री यंत्र की नित्य पूजा करता है और धूप दीप दिखाता है, वह लाखों ही नहीं करोड़ों का स्वामी बन जाता है| सिद्ध श्री यंत्र प्राप्त होना अत्यंत कठिन है।
सिद्ध श्री यंत्र क्या है?
आज बाजार में रत्नों के बने श्री यंत्र आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। जिनकी कीमत हजारों में है। लोग उन्हें अंधों की तरह खरीद रहे हैं किंतु वे सिद्ध श्री यंत्र नहीं होते। सिद्ध श्री यंत्र में विधिपूर्वक हवन पूजन करके देवी देवताओं को प्रतिष्ठित किया जाता है। तब श्री यंत्र समृद्धि प्रदान करने वाला बनता है। यह आवश्यक नहीं कि श्रीयंत्र रत्नों का बना हो। तांबे के पत्र पर बना श्रीयंत्र हो या भोजपत्र पर बना हो किंतु उसमें मंत्र शक्ति विधिपूर्वक प्रवाहित की गई हो। तभी वह श्री प्रदाता अर्थात धन प्रदान करने वाला होता है।
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लोग अपने सामर्थ्य के अनुसार सोने चांदी का श्रीयंत्र बनवाकर पूजा ग्रह में रखते हैं किंतु वह निरर्थक है। जब तक उसे सिद्ध न किया गया हो। सिद्ध किया हुआ श्रीयंत्र चाहे तांबे के पत्र पर बना हो, बिना सिद्धि के स्वर्ण सोने के पत्र पर बने श्रीयंत्र से कई गुना अच्छा होता है। अर्थात बिना प्राण प्रतिष्ठित श्रीयंत्र कितनी भी कीमती धातु का क्यों न हो, महत्वहीन होता है।
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श्री यंत्र की पौराणिक कथा
श्री यंत्र के संदर्भ में एक पौराणिक कथा है| एक बार कैलाश मानसरोवर के पास आदि शंकराचार्य जी ने कठिन तपस्या करके शिव जी को प्रसन्न किया। जब भगवान शिव जी ने कहा कि हे शंकराचार्य हम तुमसे अति प्रसन्न हैं।अतः तुम अपनी इच्छा के अनुसार कोई भी वर मांग लो। हम सहर्ष प्रदान करेंगे। तब शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। भगवान शिव ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरुप श्री यंत्र बताया और कहा यह श्री यंत्र मनुष्य का सर्वथा कल्याण कारक होगा। श्रीयंत्र परम ब्रह्म स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महा त्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। श्री यंत्र में देवी स्वयं मूर्तिमान होकर विराजती हैं।