स्वर्ण मंदिर अमृतसर में स्थित है यह ना सिर्फ सिखों का पावन धर्म स्थल है बल्कि भारत के सबसे प्रसिद्ध मंदिरों में से एक माना गया है यहां पर रोजाना लाखों की संख्या में भक्त आते हैं इस मंदिर की भव्यता देखने लायक है यह मंदिर भारत ही नहीं बल्कि दुनियाभर में स्वर्ण मंदिर के नाम से मशहूर है यह परंतु क्या आप जानते हैं इस पवित्र स्थान का असली नाम स्वर्ण मंदिर नहीं है बल्कि स्वर्ण मंदिर का असली नाम श्री हरमंदिर साहब देवस्थान है जिसे श्री दरबार साहिब के नाम से भी पुकारा जाता है इस मंदिर में बहुत सी विशेषताएं देखने को मिलती है दुनिया भर से लोग भारी संख्या में इस मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं इस मंदिर के दर्शन मात्र से ही लोगों की आत्मा तृप्त और शांत हो जाती है आज हम आपको इस लेख के माध्यम से अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई कुछ खास और बहुत ही रोचक बातों के विषय में जानकारी देने जा रहे हैं।
आइए जानते हैं स्वर्ण मंदिर से जुड़ी हुई कुछ खास और रोचक बातों के बारे में
- ऐसे बहुत ही कम लोग होंगे जिनको मालूम होगा कि इस मंदिर की नींव आखिर रखी किसने थी? सिखों के आस्था के प्रतीक स्वर्ण मंदिर की नींव सूफी संत साईं हजरत मियां मीर द्वारा रखी गई थी ऐसा कहा जाता है कि स्वर्ण मंदिर के निर्माण के लिए जमीन मुस्लिम शासक अकबर ने दान में दी थी।
- बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी है कि आखिर इस मंदिर को स्वर्ण मंदिर क्यों कहा जाता है? दरअसल, इस मंदिर की बाहरी परत पर चढ़ी सोने की चादर की वजह से इसका नाम स्वर्ण मंदिर दिया गया है जिसको मंदिर बनने के कई वर्षों पश्चात महाराजा रंजीत सिंह ने चढ़वाया था इससे पहले मंदिर को दरबार साहिब या हरमंदिर साहिब के नाम से जानते थे।
- इस मंदिर के सरोवर से जुड़ी हुई मान्यता अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इस सरोवर में औषधीय गुण मौजूद है जो भक्त इस मंदिर के दर्शन करने के लिए आता है वह सरोवर में हाथ पैर धोकर ही अंदर प्रवेश करता है ऐसा भी माना जाता है कि सरोवर के बीच से निकलने वाला रास्ता यह दिखाता है कि मृत्यु के पश्चात भी एक यात्रा और होती है।
- स्वर्ण मंदिर में सभी धर्मों के लोग आ सकते हैं इस मंदिर में चारों दिशा में 4 दरवाजे बने हैं जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि इस मंदिर में किसी भी धर्म जाति जगह के लोग आ सकते हैं।
- इस मंदिर में रोजाना दुनिया भर का सबसे बड़ा लंगर का आयोजन किया जाता है जिस लंगर में लाखों लोग भोजन करते हैं इस विषय में ऐसा कहा जाता है कि मुगल बादशाह अकबर ने भी यहां पर आम लोगों की तरह ही बैठकर लंगर ग्रहण किया था।
- इस मंदिर के अंदर चाहे कोई अमीर हो या फिर कोई निर्धन व्यक्ति हो सभी लोग अपनी इच्छा और शक्ति अनुसार सेवा करते हैं इस मंदिर में जूते एकत्रित करने से लेकर थाली साफ करने तक सभी लोग यहां पर अपनी श्रद्धा से सेवा करते हैं।