झारखंड के इस ‘जल पुरुष’ ने बदल दी अपने इलाके की तस्वीर, पद्मश्री से भी हो चुके हैं सम्मानित

This 'Jal Purush' of Jharkhand changed the picture of his area, has also been honored with Padma Shri

पानी के बेतरतीब बहाव की वजह से जहां बरसात के दिनों में सैकड़ों एकड़ जमीन पानी में डूबे रहते थे वहीं, बारिश का मौसम खत्म होते ही सुखाड़ का आलम हो जाता था.

रांची: झराखंड (Jharkhand) के जल पुरुष के नाम से जाने जाने वाले सिमोन उरांव (Simon Oraon) ने ग्रामीणों की मदद से तीन बांध, पांच तलाब और 10 से कुआं का निर्माण करवाकर एक मिशाल पेश की है. आज इस बांध से चार सौ एकड़ से अधिक भूमि में सिंचाई किया जा रहा है. सिमोन उरांव घर से तो प्रतिदिन निकलते हैं तो अकेले, लेकिन रास्ते में लोग जुड़ते जाते हैं और कारवां बन जाता है.

बेड़ो प्रखंड के दर्जनों गांवों के लोग ही नहीं, बल्कि स्थानीय प्रशासन, यहां तक की सरकार भी सिमोन की इस खासियत की मुरीद है. अपने दम पर उन्होंने ‘साथी हाथ बढ़ाना’ का नारा दिया और ग्रामीणों के सहयोग से तीन बांध, पांच तालाब और कुओं की लंबी श्रृंखला खड़ी कर दी. महज साक्षर भर होकर उन्होंने जल प्रबंधन के क्षेत्र में जो कर दिखाया है, वह सिर्फ बेड़ो के लिए ही नहीं, पूरे राज्य के साथ-साथ राष्ट्र के लिए विकास का पैमाना बन सकता है.

पानी के बेतरतीब बहाव की वजह से जहां बरसात के दिनों में सैकड़ों एकड़ जमीन पानी में डूबे रहते थे वहीं, बारिश का मौसम खत्म होते ही सुखाड़ का आलम हो जाता था. रोटी की जुगाड़ में पलायन इन गांवों की कहानी थी. इस समय सिमोन की उम्र तकरीबन 12-15 की रही होगी. पूर्वजों के अनुभव की पाठशाला में कुछ इस तरह पके कि गांव के लिए मिशाल बन गए.

ग्रामीणों की दुर्दशा देख उन्होंने लोगों को गोलबंद करना शुरू किया. लोगों की मेहनत रंग लाई और बांध बनकर तैयार. मिट्टी का कटाव न हो इसके लिए पौधे भी साथ-साथ लगाते चले गए. बांध तैयार हुए तो सैकड़ों एकड़ भूमि खेती के योग्य बन गई. जहां एक फसल नहीं होती थी, सिंचाई सुविधा बहाल हो जाने के बाद लोग तीन-तीन फसल लेने लगे. फिर पलायन क्यों, देखते ही देखते लोगों का सामाजिक-आर्थिक स्तर बढ़ता चला गया. जिन ग्रामीणों की जमीन जलाशयों के निर्माण में चली गई, उन परिवारों को मत्स्य पालन से जोड़ दिया.

विस्थापन के बाद पुनर्वास की यह बानगी नीति निर्माताओं के लिए आईना साबित हो गया है. सिमोन ने लगभग चार किलोमीटर की परिधि में फैले वनक्षेत्र पर गांव के ही लोगों का पहरा बिठा दिया, ताकि माफियायों की चंगुल से वन और पर्यावरण की रक्षा हो सके. कई स्तर पर सम्मानित किए जा चुके सिमोन की तकनीक पर आज विदेशों में जहां शोध हो रहे हैं वहीं, प्रबंधन के छात्र और कृषि विशेषज्ञों का जत्था उनसे सीख रहा है. सिमोन ने एक नारा बुलंद किया है, ‘देखो, सीखो, करो, खाओ और खिलाओ’. सिमोन के इस नारे में छिपी है विकास की तस्वीर, जो राष्ट्र के नवनिर्माण में बन सकता है मील का पत्थर.

पद्मश्री सिमोन उरांव का कहना है, ‘उस समय मेरी उम्र तकरीबन 12-15 की रही होगी. खेती-बारी ही आजीविका का इकलौता साधन था, परंतु दो जून की रोटी का जुगाड़ भी बड़ा सवाल था. 60 के दशक में कुदाल-फावड़े के साथ जो खेतों को समृद्ध करने उतरा, आज भी उसी काम में जुटा हूं. जमीन सोना है और फसल असली रत्न. पूर्वजों की पाठशाला में मिली इस सीख को हमने ग्रामीणों के बीच बांटा. फिर मेहनत की बदौलत गांव की तस्वीर बदलने की समेकित योजना तैयार की. काम मुश्किल था, परंतु ग्रामीणों के सहयोग से मंजिल मिलती गई. लगभग दशक भर की कड़ी मेहनत के बाद पहले नरपत्रा, फिर झरिया और फिर खरवागढ़ा बांध बनकर तैयार हो गया. इससे जहां सैकड़ों एकड़ भूमि डूब क्षेत्र से बाहर निकल गई, वहीं बांध बन जाने से पानी के भंडारण की समस्या दूर हो गई.’

Source News : Zee News

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News Desk