हिन्दू धर्म में चार युग (Four Yugas)माने गये हैं| वेद पुराणों के मतानुसार हजारों-लाखों वर्षों के बाद युग (Epochs) परिवर्तन होता है किंतु प्राचीन काल के विद्वानों की विद्वता का इतनी आसानी से अनुमान नहीं लगाया जा सकता। उन्होंने मनुष्य के लिए वर्ण व्यवस्था का प्रतिपादन किया। वर्ण व्यवस्था में चार वर्ण बने – ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
The four great epochs in Hinduism are Satya Yuga, Treta Yuga, Dwapar Yuga and Kali Yuga.
एक एक युग में एक एक वर्ण का शासन होता है। सर्वप्रथम सतयुग रहा जिसमें ब्राह्मणत्व चरम सीमा पर था अर्थात वह ऋषि-मुनियों ब्राह्मणों का समय था। उस समय जब तप, पूजा-पाठ और वैदिक नियमों का लोग पूर्ण रुप से पालन करते थे चाहे वह किसी जाति का व्यक्ति हो। धीरे-धीरे समय बदलता गया और ब्राह्मणत्व में थोड़ी कमी आई और क्षत्रिय वंश में बड़े बड़े वीरों की उत्पत्ति हुई। क्षत्रिय वीरों का कार्यकाल आया जिसे दूसरे युग के नाम से जाना गया। फिर तीसरे युग का कार्यकाल अर्थात वैश्यों की अधिकता हुई। वैदिक रीति रिवाजों में दिन-प्रतिदिन कमी आती गई।
Hindu tradition holds that three of these great ages have already passed away, and we are now living in the fourth one—the Kali Yuga.
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इस समय कल युग चल रहा है। कलयुग को शूद्रों का युग कहा गया है प्राचीन ऋषि मुनियों और विद्वानों ने यह बात पूर्व काल में ही कह दी थी कि कलयुग में शूद्रों का राज्य होगा जिसे आप स्वयं देख रहे हैं यह लिखने की बात नहीं है। युग जिसे सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग का नाम दिया गया वह कर्म की प्रधानता के काल को कहा गया जिस काल में जिसकी प्रधानता रही उसी के अनुरूप नामकरण हुआ। दिन प्रतिदिन होते परिवर्तन को देखकर हजारों साल पहले ही विद्वानों ने निर्धारण कर दिया था। अगर देखा जाए तो हर मनुष्य के साथ सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग भ्रमण कर रहा है।
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गले से ऊपर मस्तक (सिर) को ब्राह्मण अर्थात बुद्धि ज्ञान का भंडार कहते हैं जहां ब्रह्म (ईश्वर) का निवास होता है और जहां ब्राह्मण होता है वही सतयुग होता है। गले के नीचे कंधे, बाजुओं और छाती वाले हिस्से में क्षत्रियत्व होता है। क्षत्रिय का निवास जहां होता है वहां त्रेता युग होता है। इसके बाद कमर का हिस्सा वैश्य का होता है। वैश्य के साथ द्वापरयुग निवास करता है और फिर बारी आती है शुद्र युग अर्थात कलयुग की। इसमें ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की प्रधानता नहीं बल्कि शूद्र प्रधान (मुख्य) है। इस तरह चारों युग हर समय विद्यमान है।