समूचा संसार देवताओं की अधीन माना गया है और देवता सदैव मंत्रों के अधीन रहते हैं। अर्थात मंत्रों से उनकी पूजा आराधना की जाती है। तब वे प्रसन्न होते हैं और उन मंत्रों के ज्ञाता, मंत्रों का प्रयोग रहस्य आदि को ब्राह्मण भली प्रकार से जानते हैं। इस तरह ब्राह्मण (Brahmins) देवताओं (God) के समतुल्य हुए। इसीलिए ब्राह्मणों को देवता (Brahmins, master of humans) कहा जाता है।
ब्राह्मणों को द्विज भी कहा जाता है। द्विज का अर्थ है जिसका दो बार जन्म होता है ब्राह्मण का प्रथम जन्म माता के गर्भ से होता है और दूसरी बार यज्ञोपवीत संस्कार (जनेऊ धारण करना) उसका दूसरा जन्म माना जाता है। इस क्रम में पक्षी, सर्प, दांत और चंद्रमा भी आते हैं।
ब्राह्मण ही दान लेने के अधिकारी हैं क्योंकि दान सत्पात्र (सुपात्र) को दिया जाता है। वेद आदि स्मृतियों के अनुसार मनुष्यों में ब्राह्मण सर्वश्रेष्ठ होता है क्योंकि ब्राह्मण सदैव गायत्री जप से प्रायश्चित कर्म करते रहते हैं। दान धारण करने की शक्ति रखते हैं। अतः ब्राह्मण ही दान लेने के अधिकारी हैं अन्य वर्ग की जातियां नहीं।
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ब्राह्मण से ही पूजा पाठ कराया जाता है क्योंकि ब्राह्मण प्राचीन काल से ही जप-तप, पूजा-पाठ, आराधना उपासना में संलग्न है। धर्मशास्त्र, कर्मकांड आदि के ज्ञाता होने के साथ-साथ इन में उदारता, सात्विकता तथा त्याग की भावना होती है। जिस कारण यह ईश्वर तत्व के सर्वाधिक निकट रहते हैं तथा परंपरागत पूजा पाठ कराने की मान्यता भी इन्हें प्राप्त होती है।
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ब्राह्मणों को लोक व्यवहार में भी अधिक सम्मान प्राप्त है। इसका यह कारण है कि जिस तरह मस्जिद में हाजी या मौलवी को, गिरजाघर (church) में पादरी,को सर्वाधिक सम्मान मिलता है उसी प्रकार हिंदुओं में ब्राह्मणों को सर्वत्र सम्मान प्राप्त होता है। लोक व्यवहार में भी उन्हें अति सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है।
पूजा पाठ या किसी अन्य धार्मिक कर्म के बाद ब्राह्मणों को दक्षिणा भी देना अनिवार्य है। नीति शास्त्र के अनुसार ब्राह्मण, गुरुजन व देवता के पास कभी खाली हाथ नहीं जाना चाहिए क्योंकि उनके पास जो खाली हाथ जाता है उसे खाली हाथ वापस भी आना होता है। फिर यदि आप किसी से कोई कार्य कराते हैं तो उसका पारिश्रमिक तो देना ही पड़ता है तो फिर पूजा पाठ आदि पुण्य कर्म कराने वाले ब्राह्मणों को दक्षिणा देना परम आवश्यक हो जाता है।