नई दिल्ली (New Delhi): केंद्रीय कर्मचारियों के लिए सातवां वेतन आयोग (7th Pay Commission) सैलरी में इजाफा लेकर आया. यह अलग बात है कि सरकार के दावे और कर्मचारियों की गुणा भाग में अंतर हमेशा से रहा है, आगे भी रहेगा. कर्मचारियों की मांग को सरकारें कभी भी पूरा नहीं कर पाईं है. आयोग बैठता है और वर्तमान समय के हिसाब से बदलावों की संस्तुति करता है. यह एक लंबी प्रक्रिया होती है जिसमें तमाम कर्मचारी संगठनों से लेकर कानूनी पहलुओं और देश के आर्थिक हालात तथा सरकार के खर्च वहन करने की क्षमता का आकलन करने के बाद रिपोर्ट तैयार होती है. इस रिपोर्ट के कई पहलुओं पर हमेशा विवाद रहा है. कर्मचारी चर्चाओं के बाद भी रिपोर्ट के प्रावधानों और संस्तुतियों से सहमत नहीं होते. वह अपनी मांग उठाने के लिए स्वतंत्र होते हैं और उठाते रहे हैं. रिपोर्ट सरकार के पास जाती है. सरकार वहां पर मंथन करती है और रिपोर्ट को को पूरा का पूरा स्वीकारती है या फिर जरूरी संशोधनों के साथ स्वीकार लेती है. फिर इसे लागू किया जाता है.
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सातवें वेतन आयोग की जो सिफारिशें लागू की गई उसमें से कुछ पर केंद्रीय कर्मचारियों ने आपत्ति जताई. कई मुद्दों पर चर्चा के बाद समाधान निकल गया. सबसे अहम और सर्वाधिक कर्मचारियों से जुड़ा मुद्दा न्यूनतम वेतन मान का रहा जिसे अभी तक कर्मचारियों के हिसाब से सुलझाया नहीं जा सका है.
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नवंबर माह से लेकर अभी तक यह खबरें चली आ रही हैं कि सरकार और कर्मचारियों में न्यूनतम वेतन मान को लेकर कोई समझौता हो गया है. कहा यह भी जा रहा था कि यह दिसंबर माह से लागू हो जाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. फिर कहा गया कि यह जनवरी से लागू हो जाएगा. तब भी यह नहीं हुआ. अब खबर है कि यह 1 अप्रैल से लागू हो जाएगा. कर्मचारियों में खुशी की लहर है. कुछ दिन ही बचे हैं, नए वित्त वर्ष के साथ कर्मचारियों की सैलरी में इजाफा संभव है, अगर सरकार बढ़ें न्यूनतम वेतनमान को लागू करती है.
बता दें कि सातवें वेतन आयोग से पहले 7000 रुपये न्यूनतम वेतनमान हुआ करता था. जबकि लागू होने के बाद इसे 18000 रुपये कर दिया गया. सरकारी कर्मचारियों की यूनियन इसे 26000 करने की मांग कर रही थी. जबकि एक समय आया था कि सरकार इसे 21000 करने पर तैयार हो गई थी. यह बात केवल चर्चाओं में रही. कर्मचारी इसके लिए तैयार नहीं थे. इसके साथ ही मामला ठंडे बस्ते में चला गया और अब एक बार फिर कहा जा रहा है कि सरकार की बात को कर्मचारी तैयार हैं.
कर्मचारी नेताओं कहना है कि विवाद अब भी बरकरार है. लेकिन पहले जिन कर्मचारियों का भला हो सकता है हो जाए. हम तैयार नहीं हुए हैं, लेकिन कम से कम सरकार पहले कुछ लागू करे तो कहीं उम्मीद जगेगी, कुछ परिवारों को फायदा होगा.
यह उल्लेखनीय है कि मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि यह एक अप्रैल से लागू हो रहा है. लेकिन कर्मचारी नेताओं ने साफ कहा कि इस बारे में अभी तक अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.