आयुर्वेद के अनुसार गूलर, नीम, बबूल, वज्रदंती आदि वृक्षों की टहनियों से दातुन (Chewing Stick/Datun) करना चाहिए। नीम एक ऐसा वृक्ष है जिसकी जड़, तना, पत्तियां, छाल आदि औषधीय गुणों से भरपूर है। कुछ लोगों का मत है कि टूथपेस्ट और ब्रश से दातों की जितनी अच्छी सफाई होती है उतनी अच्छी सफाई दातुन से संभव नहीं है।
यह सत्य है कि ब्रश दांतो की अच्छी सफाई करता है किन्तु वह दांतो के मैल को अपने में भर लेता है और दूषित हो जाता है। टूथपेस्ट के बचे अवशेष के साथ पायरिया (Payariya) के कीटाणु ब्रश की तली में चिपके रहते हैं। फिर अगले दिन ब्रश करते समय वे कीटाणु दातों से चिपक जाते हैं। इस तरह टूथब्रश इस्तेमाल करने से ज्यादातर पायरिया होने के चांस रहते हैं।
ब्रश करने वालों को संभवत प्रत्येक सप्ताह नया ब्रश लेना चाहिए अर्थात 1 सप्ताह से अधिक दिनों तक एक प्रयोग में न लाए।
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बेर की दातुन से दातों की सफाई तो होती ही है साथ ही जो व्यक्ति अपने गले में मधुरता लाने का इच्छुक हो वह नियमित रूप से बेर के दातुन प्रयोग करें। अपामार्ग की दातुन स्मरणशक्ति में वृद्धि करती है और मुख की दुर्गंध भी दूर भगाती है।
नीम की दातुन से एक नहीं बल्कि अनेको लाभ है। प्रथम तो दांत की सफाई होती है। दूसरा लाभ पायरिया जैसे रोगों में नीम के दातुन अति उत्तम होती है। नीम की दातुन से तीसरा अति प्रभावकारी लाभ यह है कि यह दातुन करते समय दातुन का रस पेट में चला जाता है जिससे आंत में होने वाली कीड़ीयां मर जाते हैं। उन कीडियों के कारण पेट में अनेक प्रकार के विकार उत्पन्न होते हैं जैसे – गैस की समस्या, अपच आदि। अतः नीम की दातुन बहुत ही लाभकारी होती है।
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जिसकी जुबान लड़खड़ाती हो,बोलते समय हकलाता हो या जीभ में कालापन हो ऐसे व्यक्तियों के लिए गूलर की दातुन बेहद फायदेमंद होती है|