हवन में मंत्रों के अंत में क्यों करते हैं स्वाहा (Swaha) का उच्चारण

importance of swaha

हम जब भी अपने घर में कोई पूजा पाठ करवाते हैं और उसमें हवन (Hawan) का कार्य संपन्न किया जाता है तो हवन करते समय हम मंत्र उच्चारण के बाद स्वाहा (Swaha) शब्द का प्रयोग अवश्य करते हैं। हिंदू धर्म (Hindu Religion) में हवन का काफी महत्व है। कहते हैं हवन करने से घर में बुरी शक्तियों का नाश होता है और पवित्रता आती है किंतु क्या आप जानते हैं कि इस स्वाहा शब्द के उच्चारण के पीछे का क्या रहस्य है। आइए हम आपको बताते हैं कि स्वाहा शब्द की क्या महत्ता है।

havan

सृष्टि के समय का प्रसंग है। देवताओं को भोजन नहीं प्राप्त हो रहा था जिससे उनमें क्षीणता आ रही थी। तब सभी देवताओं ने आपस में विचार किया और उसके बाद वे ब्रह्मा जी के पास गए। वहाँ पहुँचकर विनती करते हुए बोले- भगवान! हम सभी देवताओं को भोजन नहीं प्राप्त हो रहा है जिस कारण हम सभी बहुत कमजोर हो गए हैं और हम सब बहुत दुखी भी हैं। हमारे भोजन की व्यवस्था करने की कृपा करें।

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देवताओं का दुख देखकर ब्रह्मा जी ने ध्यानपूर्वक भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली। तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रह्मा जी को भगवती मूल प्रकृति की उपासना करने का आदेश दिया। उस समय भगवती भुवनेश्वरी की कला से भगवती स्वाहा प्रकट हुई। उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा- हे प्रभु ! हे ब्रह्मा जी! वर मांगो, मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हुई हूं। भगवती के वचनों को सुनकर ब्रह्मा जी ने कहा- हे देवी! तुम अग्नि की दाहिका शक्ति होने की कृपा करो तथा जो प्राणी तुम्हारे नाम का उच्चारण करते हुए देवताओं के लिए हवन पदार्थ अग्नि में डाले वह देवताओं को प्राप्त हो। हे भगवती! तुम अग्नि की गृहस्वामिनी बनो। देवता और मनुष्य सदा तुम्हारी पूजा करेंगे।

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Image Courtesy-google

उसी समय से अग्नि में हवन करते समय मंत्र के अंत में स्वाहा का उच्चारण करने की प्रथा शुरू हो गई। जिस प्रकार शाखाहीन वृक्ष अस्तित्वहीन माना जाता है।उसी प्रकार स्वाहाहीन मंत्र निंदनीय होता है अर्थात स्वाहा का उच्चारण न करने पर मंत्र निरर्थक होता है।
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News Desk