कलश (Kalasha) को मंगल सूचक माना जाता है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कलश में ब्रह्मा, विष्णु और महेश, सृष्टि के इन 3 सर्वश्रेष्ठ शक्तियों का तथा मातृगण अर्थात माताओं का निवास बताया गया है।
सीता जी की उत्पत्ति के विषय में प्रमाण मिलता है कि राजा जनक के राज्य में सूखा पड़ गया था जिसके उपचार हेतु देवर्षि नारद ने उन्हें सोने का हल चलाने को कहा। हल चलाते समय हल का फाल यानी धार भूमि में गड़े हुए घड़े (Kalasha) से टकराया। जिससे तेज ध्वनि हुई और फूटे हुए मटके यानी कलश के अंदर से बाल रूप सीता उत्पन्न हुई। जिन्हें जगत माता यानी संसार की माता कहा जाता है।
समुद्र मंथन के समय प्राप्त अमृत कलश में ही था। प्राचीन मंदिरों या तस्वीरों में भगवती लक्ष्मी को दो हाथियों द्वारा कलश जल से स्नान कराते हुए आप देख सकते हैं अर्थात कलश पूर्ण रुप से पवित्र माना गया है।
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हिंदू धर्म के लोग क्यों बनाते हैं स्वास्तिक (Swastik) का चिन्ह
नवरात्रों में कलश स्थापना का बहुत महत्व है। नवरात्रि के पहले ही दिन से कलश स्थापना के साथ माता की पूजा की शुरुआत की जाती है। माना जाता है कि कलश की स्थापना करने से परेशानियां दूर होती है और घर में खुशहाली व संपन्नता आती है। देवी की पूजा हेतु कलश स्थापित किया जाता है। जिसका अर्थ यह होता है कि कलश रूप में स्वयं देवी मूर्तिमान होकर विराजती है।
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कोई भी शुभ कार्य जैसे ग्रह प्रवेश, ग्रह निर्माण, विवाह पूजन अनुष्ठान आदि में कलश की स्थापना की जाती है । कलश को लोग लाल वस्त्र, नारियल, आम के पत्तों, कुश आदी से अलंकृत करते हैं। कलश पर स्वास्तिक (swastik) का चिन्ह भी बनाया जाता है। जो मंगल का प्रतीक होता है अर्थात मंगल करने वाला होता है कहीं-कहीं गाय के गोबर से भी टीकते हैं गाय के गोबर में टीबी (Tuberculosis) के जीवाणु को मारने की क्षमता होती है यह वैज्ञानिक परीक्षण द्वारा भी सिद्ध हो चुका है।