मांग में सिंदूर (Sindoor or vermilion) लगाना सुहागिन स्त्रियों का सूचक है। हिंदुओं में विवाहित स्त्रियां ही सिंदूर लगाती है। कुंवारी कन्याओं एवं विधवा स्त्रियों के लिए सिंदूर लगाना वर्जित है।
एक प्राचीन मान्यता के अनुसार देवी पार्वती ने अपने पति शिवजी के सम्मान के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया था जिसके कारण सिंदूर को देवी पार्वती का रूप माना जाता है। अतः यह मान्यता है कि जो महिला अपने माथे पर सिंदूर धारण करती है उस महिला पर मां पार्वती की सदैव कृपा बनी रहती है और मां पार्वती प्रत्येक क्षण उस महिला के पति की रक्षा करती है।
भारतीय समाज में सिंदूर का बहुत महत्व है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार विवाह के समय सिंदूरदान पद्धति काफी प्राचीन और महत्वपूर्ण मानी गई है। हिंदू धर्म में विवाह के समय कन्या की मांग में प्रथम बार सिंदूर उसके पति द्वारा लगाया जाता है। यह रिवाज सिंदूरदान (Sindoordaan) कहलाता है। इसके अलावा सिंदूर लगाने से स्त्रियों के सौंदर्य में भी निखार आता है अर्थात उनकी सुंदरता और अधिक बढ़ जाती है।
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विवाह संस्कार के समय वर यानी दूल्हा वधू (दुल्हन) के मस्तक में मंत्रोच्चार के मध्य पांच या सात बार चुटकी से सिंदूर डालता है। तत्पश्चात विवाह कार्य संपन्न हो जाता है। उस दिन से वह स्त्री अपने पति की दीर्घायु (लंबी आयु) के लिए प्रतिदिन सिंदूर लगाती है। विवाह के पश्चात मांग में दमकता सिंदूर स्त्रियों के श्रृंगार का प्रमुख अंग बन जाता है।
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मांग में सिंदूर लगाने का वैज्ञानिक कारण भी है। ब्रह्मरंध्र और अध्मि नामक मर्मस्थान के ठीक ऊपर स्त्रियां सिंदूर लगाती हैं जिसे सामान्य भाषा में सीमंत अथवा मांग कहते हैं। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह भाग अपेक्षाकृत कोमल होता है।
सिंदूर में पारा जैसी धातु अधिक मात्रा में पाई जाती है जो स्त्रियों के शरीर की विद्युत ऊर्जा को नियंत्रित करता है तथा मर्मस्थल को बाहरी दुश्मनों से भी बचाता है। पारे के साथ-साथ सिंदूर में हल्दी और चूने का मिश्रण भी इस्तेमाल किया जाता है। हल्दी और चूने का मिश्रण पारे के साथ मिलकर शरीर में रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद करता है। अतः वैज्ञानिक दृष्टि से भी स्त्रियों को सिंदूर लगाना आवश्यक है।