यदि जाने अनजाने में किसी से पाप कर्म हो जाए तो उसका प्रायश्चित करने से पाप कम हो जाता है। यह ऋषि मुनि एवं वेद शास्त्र से ज्ञात होता है। प्रायश्चित का अर्थ है-पश्चाताप (Atonement)। इसी संदर्भ में एक विद्वान ब्राह्मण ने एक कथा का विवेचन करते हुए बताया था।
एक कस्बे में एक महात्मा रहते थे और उसी कस्बे में एक वैश्या रहती थी। महात्मा जी अपना कार्य करते थे और वह वैश्या अपना कार्य करती थी। अर्थात महात्मा जी लोगों को अच्छी शिक्षा व ज्ञान का उपदेश देते थे। अच्छे मार्ग पर चलने, लोगों में अहिंसा और अच्छी बातों का प्रवचन करते थे जबकि वैश्या अपने धंधे से लिप्त रहती थी किंतु वह प्रातः काल जब नहा धोकर धंधे पर बैठी थी तो उससे पहले 2 मिनट भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर अपने गुनाहों की माफी मांगती। फिर अपने धंधे में लिप्त हो जाती। उसके धंधे से कस्बों में तरह तरह की अफवाहे फैलने लगी।
एक दिन महात्मा ने उसे अपने आश्रम पर बुलाया और समझाया कि यह तुम गलत काम कर रही हो इससे तुम्हें बहुत भारी पाप लग रहा है अर्थात तुम पाप की भागी बन रही हो। अतः यह गलत धंधा छोड़ दो। तब वैश्या ने कहा – महात्मा जी! अगर मैं धंधा छोड़ दूंगी तो भूखी मर जाऊंगी। तब महात्मा ने समझाया भगवान पर भरोसा रखो वही तुम्हें आहार देगा। वैश्या उनकी बात मान गई और धंधा छोड़ दिया।
धीरे-धीरे वह कमाई की रकम से अपना समय गुजारने लगी। कुछ दिन बाद सारी जमा-पूंजी समाप्त हो गई। तब वह महात्मा के पास जाकर बोली – मेरे सारे पैसे समाप्त हो गए हैं, अब मैं क्या खाऊं? तब महात्मा ने कहा कि भगवान पर भरोसा रखो वह तुम्हें आहार अवश्य देगा। वैश्या चुपचाप घर वापस लौट गई। एक दिन वह भूखी सो गई। फिर दूसरा दिन बीता, फिर तीसरा दिन भी बीत गया। जब उससे भूख नहीं बर्दाश्त हुई तब वह पहले की तरह अपने धंधे में लिप्त हो गई और वही क्रिया दोहराने लगी। भगवान की मूर्ति के सामने 2 मिनट प्रायश्चित करती फिर अपने धंधे में लग जाती।
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संयोग ऐसा हुआ कि कुछ दिन बाद महात्मा का देहांत हो गया और उसी दिन वैश्या भी मर गई। दोनों की आत्मा उनके शरीर से निकलकर यमराज के दरबार में गई। यमराज ने वैश्या और महात्मा जी दोनों के पाप और पुण्य का लेखा जोखा किया तदुपरांत वेश्या को स्वर्ग में और महात्मा जी को नर्क में डालने लगे। तब महात्मा जी ने यमराज से कहा कि धर्मराज जी आप के दरबार में अन्याय हो रहा है। मैंने जीवन भर लोगों को अच्छे मार्ग पर चलने का उपदेश दिया फिर भी आप मुझे नर्क में डाल रहे हैं जबकि वेश्या ने जीवन भर पाप कर्म किया, लोगों को पथभ्रष्ट किया फिर भी उसे स्वर्ग दे रहे हैं। यह आपका कैसा न्याय है?
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तब यमराज ने महात्माजी से कहा हम धर्मराज (Dharmaraj) कहे जाते हैं। हमारे दरबार में कभी अन्याय नहीं होता। देखो उधर पृथ्वी लोक में आपके शरीर को लोग गाजे-बाजे के साथ दफनाने ले जा रहे है। वहां आपकी मज़ार बनाकर पूजा किया करेंगे। क्योंकि आपके शरीर ने, आपके मुंह ने प्रवचन किया था सो आपके शरीर की सदगति हो रही है किंतु आपके मन में परमात्मा के प्रति वास्तविक प्रेम नहीं था बल्कि आपके मन में नाम कमाने की, चारों ओर प्रसिद्ध होने की लालसा थी। आत्मा से कभी आपने परमात्मा का सुमिरन नहीं किया इसलिए यहां नरक में डाले जा रहे हो।
उधर दूसरी तरफ वैश्या को देखो उसने शरीर से पाप किया था। देखो महात्मा जी उसके शरीर को लोग घसीटकर नाले में फेंक रहे हैं। उसके शरीर को चील कौवे खायेंगे, कीड़े पड़ेंगे लेकिन वह धंधे पर बैठने से पहले 2 मिनट ही सही भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर अपने पापों का प्रायश्चित करती थी। इसलिए इसकी आत्मा को स्वर्ग हो रहा है। प्रायश्चित करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। आप भी भली भांति जानते हैं पर आपमें तो नाम कमाने का भूत सवार था जिसने जैसा किया उसे वैसा ही मिला।