- मोबाइल, कंप्यूटर के स्क्रीन रिजोल्यूशन, ओएस और मॉडल के ब्योरे से बनता है प्रोफाइल
- एप्स और वेबसाइट में छिपी रहती है टेक्नोलॉजी
- लोगों को पता नहीं लगता कि उनकी ट्रैकिंग हो रही है
ब्रायन चेन
ऑनलाइन निगरानी और ट्रैकिंग से बचने के लिए डेटा सुरक्षित रखने पर भी डिजिटल प्राइवेसी की गारंटी नहीं है। एडवरटाइजमेंट टेक इंडस्ट्री हमारी डिजिटल गतिविधियों पर नजर रखने के रास्ते खोज ही लेगी। तथाकथित फिंगरप्रिंटिंग के जरिये ऐसा हो रहा है। सिक्यूरिटी रिसर्चर इसे अगली पीढ़ी की टेक्नोलॉजी कहते हैं। यह टेक्नोलॉजी एप्स और वेबसाइट्स में परदे के पीछे काम करती है। फिंगरप्रिंटिंग के माध्यम से मोबाइल डिवाइस या कंप्यूटर के स्क्रीन रिजोल्यूशन, आपरेटिंग सिस्टम और मॉडल की जानकारी जुटाते हैं। डिवाइस की पूरी जानकारी मिलने के बाद डेटा का प्रोफाइल बनता है। यह उसी तरह लोगों को पहचानता है जैसे फिंगर प्रिंट से पहचाना जाता है। यह जानकारी एडवरटाइजर द्वारा कंज्यूमर को प्रभावित करने के काम आती है।
सिक्यूरिटी शोधकर्ताओं ने सात वर्ष पहले फिंगरप्रिंटिंग से ट्रैकिंग के तरीके का पता लगाया था। लेकिन, कुछ समय पहले तक इस पर ज्यादा चर्चा नहीं होती थी। आज 3.5% सबसे पॉपुलर वेबसाइट ट्रैकिंग के लिए इसका उपयोग करती हैं। मोजिला के अनुसार 2016 में यह लगभग 1.6% था। बहुत बड़ी संख्या में मोबाइल एप इसका उपयोग कर रहे हैं।
फिंगरप्रिंटिंग की शुरुआत कैसे हुई?
पिछले कुछ वर्षों से एपल, मोजिला ने अपने वेब ब्राउजर में प्राइवेसी की सुरक्षा के मजबूत उपाय किए हैं। सफारी, फायरफॉक्स ब्राउजर में भी ट्रैकर ब्लॉकिंग की व्यवस्था है। इससे एडवरटाइजर के लिए वेब पर हमारा पीछा करना और विज्ञापन देना कठिन हो गया है। सोशल मीडिया बटन के भीतर लगे कुकीज और पिक्सल्स जैसे ट्रैकिंग के परंपरागत तरीके बेअसर हो गए हैं। टेक्नोलॉजी ब्लॉक होने के कारण एडवरटाइजरों ने लोगों को ट्रैक करने के लिए अलग तरीका अपनाया है।
फिंगरप्रिंटिंग कैसे काम करती है?
जब आप वेब ब्राउज करते हैं तब ब्राउजर वेबसाइट्स को आपके हार्डवेयर के बारे में जानकारी देता है। जब आप कोई मोबाइल एप इंस्टाल करते हैं तो ऑपरेटिंग सिस्टम एप के साथ हार्डवेयर की जानकारी शेयर करता है। यह इसलिए कि एप को मालूम होना चाहिए कि आप किस तरह के फोन का उपयोग करते हैं ताकि वह प्रोसेसर की गति और स्क्रीन के आकार के अनुकूल हो सके। एप्स और वेबसाइट के डेटा लेने पर कुछ पाबंदियां हैं। उदाहरण के लिए आईफोन और एंड्रॉयड फोन पर लोकेशन डेटा, कैमरा, माइक्रोफोन तक पहुंचने के लिए एप को अनुमति लेनी पड़ती है। कई ब्राउजर्स को भी इन सेंसरों तक पहुंचने के लिए इजाजत की जरूरत रहती है। पिछले वर्ष फ्रांस में शोधकर्ताओं ने एक स्टडी में पाया कि उनके द्वारा एकत्र एक तिहाई फिंगरप्रिंट एकदम अलग और अनूठे हैं। इसलिए आसानी से पहचाने जा सकते हैं। 2017 में लेहीघ यूनिवर्सिटी और वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में एक स्टडी में फिंगरप्रिंटिंग की विधि से 99% यूजर्स की पहचान कर ली गई। प्राइवेसी समर्थकों का कहना है, फिंगरप्रिंटिंग का दुरुपयोग होता है क्योंकि कुकीज को पहचानकर लोग उसे डिलीट कर सकते हैं। लेकिन, फिंगरप्रिंटिंग का तो पता ही नहीं लगता है।