अक्सर लोग असफलता (Failure) को नकारात्मक ढंग से परिभाषित करते हैं क्योंकि उन्होंने अधिकतर यही देखा है कि असफल लोगों को समाज स्वीकार नहीं करता। रिजेक्शन को आगे बढ़ने या सुधार करने की दिशा में एक पहल समझनी चाहिए। इसके बावजूद लोग इसे अवसरों की राह में बाधा मानते हैं जिसके चलते असफल व्यक्ति स्वयं को भयग्रस्त और बेचैन महसूस करता है। साथ ही उसे किसी भी कार्य की शुरूआत में यह भय ( Fear of Failure) सताने लगता है कि सफलता मिलेगी या नहीं। कई बार तो भय इतना हावी हो जाता है कि व्यक्ति प्रयास करना ही छोड़ देता है। जिससे वह अपना समुचित विकास नहीं कर पाता। इसलिए विफलता के भय से उबरना बेहद जरूरी है।
क्या है असफलता के प्रति नजरिया
असफल होने का भय कम उम्र से ही व्यक्ति को सताने लगता है। जैसे- स्कूल के दिनों में ही छात्र अपने ग्रेड या फिर नंबरों को लेकर चिंता में रहते हैं। जो छात्र औसत या कम नंबर लाते हैं, समाज ही नहीं अपनी नजरों में भी वह खुद को कमतर समझने लगते हैं। यदि इसी उम्र में उन्हें असफलता के प्रति स्वस्थ नजरिया न सुझाया जाए तो भविष्य में यह उसी विश्वास को पुख्ता करने का काम करता है कि कम नंबर लाने वाला सफल नहीं है। कुछ हासिल कर लेना ही वह मापदंड है जिससे किसी की सफलता मापी जाती है। सफलता (Success) को इतना बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जाता है कि असफलता लोगों को नाखुश करने लगती है और लोगों में आत्मविश्वास की कमी आ जाती है।
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असफलता के कारण
अनुभवहीनता या संसाधनों की कमी के कारण असफलता मिलती है। कार्य का अनुभव नहीं हो, जरूरी संसाधनों और जरूरी स्किल की कमी हो तो इस बात की बहुत संभावना होती है कि उस कार्य में व्यक्ति असफल हो जाएगा। इसके अतिरिक्त कई बार मस्तिष्क ही संतुष्ट नहीं होता। वह खुद से अधिक अपेक्षा रखता है। एक अपेक्षा पूरी होती है तो झट से दूसरी अपेक्षा शुरू हो जाती है। बहुत से लोगों पर परफेक्शनिस्ट होने का जुनून इतना हावी होता है कि कार्य को उस हद तक न कर पाने से विफलता महसूस होती है।
कई बार हमारा दिमाग नकारात्मक ढंग से सोचता है उसे लगता है कि कुछ भी अच्छा नहीं होगा। अपनी क्षमताओं पर भरोसा नहीं होता। जब हम खुद से ही कभी संतुष्ट नहीं होंगे तो विफलता की भावना पैदा होगी ही। कई बार ऐसा भी पाया जाता है कि रचनात्मक लोगों से अधिक गलतियां होती हैं। काम को त्रुटिरहित करने की कोशिश कई बार रचनात्मकता को भी मार देती है।
अपेक्षाओं का भार
अपेक्षाएं व्यक्ति को स्वयं का आकलन करने योग्य बनाती हैं। यह वह मापदंड हैं जिन पर व्यक्ति लगातार खुद को परखता रहता है। कभी कभी हम स्वयं की तुलना दूसरों से करके भी स्वयं को असफल महसूस करने लगते हैं। वास्तव में खुद से कई बार जो अपेक्षाएं होती है वह वास्तविक या व्यवहारिक नहीं होती। जिन सफल सेलेब्रिटीज को हम जानते हैं वह सफल होने से पहले संघर्षरत ही थे। कई बार हम खुद को इतना परफेक्ट मानने लगते हैं कि लगता है कि हमसे कोई चूक नहीं होगी।
इन बातों का रखें ध्यान
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- कोशिश न करने का मतलब है कि हमें खुद पर संदेह है विफलता के इस भय से मुक्त होने के लिए कुछ कदम उठाने पड़ते हैं।
- अपना लक्ष्य समझे। काम शुरु करने से पहले ही उसके लिए संसाधन और अन्य जरूरी जानकारियां एकत्र कर लें। परिणाम के बारे में सोचेंगे तो लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते।
- लक्ष्य बनाएं और उस पर चलने के लिए प्लान बनाकर उसका अनुसरण करें।
- स्वयं को सकारात्मक रखें। नकारात्मक ढंग से सोचने के बजाय केवल लक्ष्य की ओर बढ़ते रहें।
- अपनी पिछली सफलता के बारे में सोचें। वह कैसे मिली थी? इस बार सफलता कैसे मिल सकती है? इसकी रणनीति तैयार करें।
- खुद पर भरोसा रखें। असफलता मिलेगी तो उसे एक अवसर की तरह समझें। उन कार्यों के बारे में सोचें जिनमें कुछ प्रयासों के बाद सफलता प्राप्त हुई थी। ऐसे लोगों की कहानियां पढ़े जिन्होंने संघर्ष करने के बाद सफलता प्राप्त की।
- असाधारण नहीं बन सकते तो। साधारण बने दुनिया के असाधारण माने जाने वाले लोग भी पहले आम इंसान थे। फर्क सिर्फ यही है कि उन्होंने साधारण कार्यों को भी असाधारण ढंग से किया और उन्हें उन्हें सफलता मिली।