मंदी की मार: ऑटो के बाद अब कताई उद्योग भी संकट में, जा सकती हैं हजारों नौकरियां

After the recession: after the auto, now the spinning industry is also in crisis, thousands of jobs can go

करीब एक-तिहाई उत्पादन बंद हो चुका है और जो मिलें चल रही हैं, वह भी भारी घाटे का सामना कर रही हैं. अगर यह संकट दूर नहीं हुआ तो हजारों लोगों की नौकरियां जा सकती हैं.
देश के कताई उद्योग तक मंदी की मार पहुंच गई है. कताई उद्योग अब तक के सबसे बड़े संकट से गुजर रहा है. देश की करीब एक-तिहाई कताई उत्पादन क्षमता बंद हो चुकी है और जो मिलें चल रही हैं, वह भी भारी घाटे का सामना कर रही हैं. अगर यह संकट दूर नहीं हुआ तो हजारों लोगों की नौकरियां जा सकती हैं. कॉटन और ब्लेंड्स स्पाइनिंग इंडस्ट्री कुछ उसी तरह के संकट से गुजर रही है जैसा कि 2010-11 में देखा गया था.

नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन के अनुसार राज्य और केंद्रीय जीएसटी और अन्य करों की वजह से भारतीय यार्न वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा के लायक नहीं रह गया है. अप्रैल से जून की तिमाही में कॉटन यार्न के निर्यात में साल-दर-साल 34.6 फीसदी की गिरावट आई है. जून में तो इसमें 50 फीसदी तक की गिरावट आ चुकी है.

कपास पर भी पड़ेगी मार

अब कताई मिलें इस हालात में नहीं हैं कि भारतीय कपास खरीद सकें. यही हालत रही है तो अगले सीजन में बाजार में आने वाले करीब 80,000 करोड़ रुपये के 4 करोड़ गांठ कपास का कोई खरीदार नहीं मिलेगा.

10 करोड़ लोगों को मिला है रोजगार

गौरतलब है कि भारतीय टेक्सटाइल इंडस्ट्री में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 10 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है. यह एग्रीकल्चर के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सेक्टर है. ऐसे में बड़े पैमाने पर लोगों के बेरोजगार होने की आशंका है. इसलिए नॉर्दर्न इंडिया टेक्सटाइल मिल्स एसोसिएशन ने सरकार से मांग की है कि तत्काल कोई कदम उठाकर नौकरियां जानें से बचाएं और इस इंडस्ट्री को गैर निष्पादित संपत्त‍ि (NPA) बनने से रोकें.

क्या हैं समस्याएं

यह उद्योग कर्ज पर ऊंची ब्याज दर, कच्चे माल की ऊंची लागत, कपड़ों और यार्न के सस्ते आयात जैसी कई समस्याओं से तबाह हो रहा है. भारतीय मिलों को ऊंचे कच्चे माल की वजह से प्रति किलो 20 से 25 रुपये का नुकसान उठाना पड़ रहा है. इसके अलावा श्रीलंका, बांग्लादेश, इंडोनेशिया जैसे देशों के सस्ते कपड़ा आयात की दोहरी मार पड़ रही है.

गौरतलब है कि नौकरी पिछले कई साल से देश के लोगों की सबसे बड़ी चिंता बनी हुई है. आजतक-कार्वी इनसाइट्स द्वारा किए गए ‘देश का मिजाज’ सर्वे में शामिल ज्यादातर लोगों के लिए पिछले पांच साल की तरह इस साल भी यह चिंता की बात रही है. सर्वे में शामिल 35 फीसदी लोगों ने इसे सबसे बड़ी चिंता बताई है.

रोजगार के मोर्चे पर मोदी सरकार लगातार विपक्ष के निशाने पर रही है. तमाम आकंड़े पेश कर विपक्ष ने यह बताने की कोशि‍श की है कि मोदी सरकार रोजगार के मोर्चे अपने लक्ष्य को हासिल करने में नाकाम रही है.

Source: Aaj Tak News

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News Desk