रामायण कथा के अनुसार रावण (Ravan) महापंडित था। उसे भविष्य, भूत, वर्तमान तीनों काल का ज्ञान था। ज्योतिष का प्रकांड विद्वान था। यम, वरुण, कुबेर, शनि, सूर्य आदि को उसने बंदी बना रखा था। सब कुछ होते हुए उसे राक्षस योनि से मुक्त होने का साधन चाहिए था। जिस कारण उसने श्री रामचंद्र जी से शत्रुता की। उसे यह ज्ञान था कि श्री राम जी विष्णु जी के अवतार हैं। यदि इनके हाथ से मेरा और मेरे वंश का विनाश होगा तो हमें मोक्ष प्राप्त होगा। एक तरह से उसने लंका का विनाश (Destruction of Lanka) स्वयं कराया।
एक लोकोक्ति कथा के अनुसार उसने अपनी बहन सुपनखा (Supnakha) का विवाह एक राजकुमार से करा दिया। कुछ दिनों बाद समयानुसार सूपनखा को एक पुत्र उत्पन्न हुआ। लगभग 10 वर्ष की आयु में ही उसका पुत्र बहुत बड़ा धनुर्धर और वीर हुआ। उनकी वीरता की प्रशंसा सुनकर रावण उसे देखने गया। रावण उसे अपनी गोद में प्रेमपूर्वक बिठाकर प्यार कर रहा था कि अचानक वह बालक हंसकर बोला मामाजी यह आपके 20 हाथ और 10 सिर अच्छे नहीं लग रहे हैं। कहो तो जो अधिक संख्या में हैं अर्थात 18 हाथ और 9 सिर अपनी तलवार से काट कर फेंक दूं। तब एक सिर और दो हाथ रह जाएंगे।
अपने भांजे के मुख से ऐसा उच्चारण सुनकर रावण क्रोध से आग बबूला हो गया। उसने सूपनखा के पुत्र को गोदी से उतार दिया और अपने घर चला गया। उधर जब सूपनखा अंदर से आई तो रावण को वहां उपस्थित न पाकर अपने पुत्र से पूछने लगी। बेटे तेरे मामा जी कहां गए? तब बालक ने कहा माता श्री मामा जी चले गए। सूपनखा ने पूछा-क्यों ?
वह बालक कहने लगा कि मैंने मामा जी से इस प्रकार कहा बस वे क्रोधित होकर मुझे नीचे फेंक कर चले गए। इतना सुनते ही सूपनखा के मन में कई तरह की आशंकाएं उठने लगी।उसने अपने पुत्र से कहा कि बेटे तुम्हें इस तरह की बातें नहीं करनी चाहिए थी। अब कोई न कोई अनर्थ होकर रहेगा। तेरे मामा जी बहुत ही क्रोधी स्वभाव के हैं। यह कह कर सूपनखा चुप हो गई और भविष्य में होने वाले अनर्थ की प्रतीक्षा करने लगी।
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एक बार उसने मन में विचार किया कि लंका जाकर अपने भाई से क्षमा प्रार्थना करें किंतु उससे पहले ही एक रात में वह बालक अपने पिता के साथ सोया हुआ था। उसी रात रावण चुपके से आया और अपनी तलवार से पिता पुत्र दोनों की को मौत के घाट उतार दिया। रावण ने अपनी बहन को विधवा बना दिया और पुत्र का वध करके पुत्रहीन कर दिया।
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