पीपल के वृक्ष में शनिदेव का निवास माना जाता है। शनिदेव का नाम सुनकर ही लोगों के अंदर एक भय जाग उठता है।शनि को सभी ग्रहों में सबसे खतरनाक ग्रह माना जाता है|हिंदू धर्म में शनि देव को न्याय का देवता माना जाता है अधिकांश लोग शनिदेव को कठोर मानते हैं क्योंकि इनके प्रकोप से बड़े बड़े धनवान भी दरिद्र बन जाते हैं किंतु लोगों की अवधारणा एकदम गलत है क्योंकि शनिदेव निष्पक्ष न्याय करते हैं और अन्याय करने वालों को दंड भी देते हैं | शनिदेव तेल (oil on shanidev) चढ़ाने से प्रसन्न होते हैं |
शनि देव् का जन्म-
शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र हैं इनकी माता छाया सूर्यदेव की दूसरी पत्नी थी शनि देव जब अपनी माता छाया के गर्भ में थे तब उनकी मां शिवजी की पूजा में मग्न थी जिस कारण पर अपने खाने पीने का ध्यान भी नहीं रखती थी इसी कारण शनिदेव का रंग काला हो गया यही कारण है कि सूर्य देव ने अपनी पत्नी छाया पर आरोप लगाया कि शनिदेव उनके पुत्र नहीं है और शनिदेव को अपने पिता सूर्यदेव से बैर हो गया|
शनि देव को लोग अत्यंत क्रूर मानते हैं और शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए अनेक उपाय करते हैं। उन्हीं में से एक है उनकी प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाना। लोग यह मानते हैं कि तेल चढ़ाने से वे प्रसन्न होंगे और उनके कष्टों को दूर कर देंगे लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि शनिदेव तेल चढ़ाने से क्यो प्रसन्न होते हैं ?
शनि के 10 कल्याणकारी नाम-
शनिदेव के मंत्र –
वेद मंत्र:-
औम प्राँ प्रीँ प्रौँ स: भूर्भुव: स्व: औम शन्नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये शंय्योरभिस्त्रवन्तु न:.औम स्व: भुव: भू: प्रौं प्रीं प्रां औम शनिश्चराय नम:
जप मंत्र :-
ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनिश्चराय नम:
शनि के रत्न और उपरत्न-
नीलम, नीलिमा, नीलमणि, जामुनिया, नीला कटेला, आदि शनि के रत्न और उपरत्न हैं। अच्छा रत्न शनिवार को पुष्य नक्षत्र में धारण करना चाहिये | इन रत्नों मे किसी भी रत्न को धारण करते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा मिल जाता है।
शनिदेव के उपाए (उनकी प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाना )-
शनि देव को लोग अत्यंत क्रूर मानते हैं और शनिदेव के प्रकोप से बचने के लिए अनेक उपाय करते हैं। उन्हीं में से एक है उनकी प्रतिमा पर सरसों का तेल चढ़ाना। लोग यह मानते हैं कि तेल चढ़ाने से वे प्रसन्न होंगे और उनके कष्टों को दूर कर देंगे लेकिन कभी आपने यह सोचा है कि शनिदेव तेल चढ़ाने से क्यो प्रसन्न होते हैं ?
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रामायण की कथा के अनुसार जब समुद्र पर अपनी वानरी सेना के सहयोग से श्री रामचंद्र जी ने सेतु बांध लिया तब उसकी देखभाल के लिए वीर हनुमान को नियुक्त किया कि कोई राक्षस इसे क्षति ना पहुंचा सके। संध्या के समय हनुमानजी अपने प्रभु श्रीराम के ध्यान में मग्न थे। उसी समय शनि देव वहां आए और कहने लगे सुना है तुम बहुत बलशाली हो। यदि बलशाली हो तो मुझसे युद्ध करो। उस समय हनुमान जी ने शनिदेव को समझाया कि मैं अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूं |अतः विघ्न मत डालो किंतु शनिदेव न माने तब हनुमान जी ने उन्हें अपनी पूंछ में लपेटकर पत्थरों पर पटकना आरंभ कर दिया जिससे शनिदेव का शरीर लहूलुहान हो गया। वे हनुमान जी से क्षमा मांगने लगे और बंधनमुक्त करने की प्रार्थना करने लगे। तब हनुमान जी बोले कि पहले मुझे वचन दो कि मेरे प्रभु श्रीराम के भक्तों को क़भी कष्ट नहीं दोगे। शनि देव ने वचन दिया तब हनुमान जी ने उन्हें बंधन मुक्त कर दिया। लहूलुहान हो चुके शनि देव जी ने अपने घावो की पीड़ा शांत करने के लिए हनुमान जी से तेल मांगा। हनुमान जी ने जो तेल दिया उसे घाव पर लगाते ही शनि देव की पीड़ा मिट गई। तभी से शनिदेव को तेल चढ़ाया जाने लगा और इसीलिए तेल चढ़ाने से शनि देव प्रसन्न होते हैं।
शनिदेव के दान-
शनिवार को तेल, काले तिल, काले कपड़े, जामुन के फ़ल, काले उडद, काली गाय, गोमेद, काले जूते,भैंस, लोहा,आदि दान करने से शनि देव प्रसन्न रहते हैं।